Sunday, May 25, 2008

बुद्ध जयंती पार्क में काव्य पाठ

20 मई 2008 को सुबह 11 बजे बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर दलित लेखक संघ ने दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में काव्य पाठ का आयोजन किया. जिसकी अध्यक्षता मा. कर्मशीलभारती ने और संचालन मा. अनिता भारती ने किया.

काव्य गोष्ठी में पूरन सिंह, पुष्पा विवेक, उमराव सिंह जाटव, रजनी तिलक, शीलबोधि, अरूण कुमार गौतम, उषा मौर्य, धर्मपाल मौर्य, आर सी विवेक, आशा राम गौतम, वाजिदा तबस्सुम, सुमेधा बौद्ध, सीमा यादव, अनुलेखा और पावेल सिंह आदि ने अपनी कविताएँ सुनाईं.

Wednesday, May 21, 2008

अधिवेशन के लिए आमंत्रण

प्रिय साथी,

क्रांतिकारी जयभीम,
हमें आपको सूचित करते हुए खुशी हो रही हैं कि दलित लेखक संघ अपना तीसरा अधिवेशन 1 और 2 जून 2008 को करने जा रहा है. यह अधिवेशन दलित लेखक संघ प्रत्येक दो वर्ष बाद आयोजित करता है. आपको जानकर हर्ष होगा कि इस अधिवेशन में देशभर के कोने-कोने से आए दलित- गैरदलित साहित्यकार, बुद्धिजीवी, तथा सामाजिक कार्यकर्ता भाग ले रहे हैं. हमें विश्वास है कि पिछले अधिवेशन की तरह ही दलेस के इस अधिवेशन में भी हमें आपस में मिल-बैठकर विभिन्न वैचारिक, साहित्यिक, और सामाजिक मुद्दों पर आपसी समझदारी विकसित करने का मौका मिलेगा तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों मे चल रही साहित्यिक तथा सामाजिक गतिविधियों से भी रूबरू होने का अवसर प्राप्त होगा.
1991 से शुरु हुए भूमंडलीकरण ने जहाँ एक और पूंजीपतियों, नवधनाढ्यों, अभिजात्य वर्ग और उच्च जातीय समाज के लिए खुला बाजार, तरक्की के अनेक रास्ते सुनिश्चित किए हैं वही दूसरी ओर भूमंडलीकरण ने दलित वंचित शोषित वर्ग के हाथों से निवाला छीनने का काम किया हैं. आज भूमंडलीकरण उनके सामने एक नई चुनौती के रूप में खडा हैं. दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यक वर्ग की पहुँच से दूर होते राजकीय संसाधन और कम होते अवसर के साथ आज उससे उसके जल, जंगल, जमीन छीने जा रहे हैं. सम्पूर्ण सामाजिक विकास के विरुद्ध वैयक्तिक विकास को ही पूर्ण विकास का पैमाना मानने की गहरी चाल चली जा रही है. इस वैयक्तिकवाद के विस्तार के चलते ही अस्मिता-संघर्ष एक बडे संकट के रूप मे उभर कर आया है, अस्मिता के संघर्ष ने जहाँ एक ओर लोगों को अपनी वर्गीय, लैंगिक और जातीय चेतना दी है वही दूसरी ओर अस्मिताओं की सामूहिक और आपसी एकता को भी खतरे में डाला है. आज अस्मिताओं की लडाई अपनी-अपनी अस्मिताओं के वर्चस्व कायम करने की लडाई में तब्दील होती हुई नजर आ रही है.
दलित लेखक संघ द्वारा आयोजित द्विवार्षिक अधिवेशन की कोशिश भी इन्हीं ज्वलंत मुद्दों पर गंभीर चर्चा करते हुए आपसी समझदारी बनाने का प्रयास करना है. अधिवेशन का केन्द्रीय विषय- 'भूमंडलीकरण के दौर मे अस्मिताओं का संकट' है. कार्यक्रम का विवरण इस प्रकार है.
स्थान दिल्ली समाज कार्य विद्यालय सभागार, दिल्ली विश्वविद्यालय माल रोड (विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के पास), दिल्ली-110007
तिथि - 1 - 2 जून 2008,
समय- प्रात - 9.30 से आरंभ.

अधिवेशन में आप सादर आमंत्रित हैं. हमारे लिए आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है.

विशेष- हम निमंत्रण-पत्र के साथ आपको दलित लेखक संघ की छमाही रिपोर्ट भी भेज रहे हैं, आपसे अनुरोध है कि आप अपनी पत्र-पत्रिकाओं में इसे छापने का कष्ट करें.
भवदीय,
अनिता भारती
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महासचिव, दलित लेखक संघ
सम्पर्क- 9968297866, 9899700767, 011-20262114.

हमने क्या किया

अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट

दलित लेखक संघ के दूसरे अधिवेशन में अप्रैल 2004 में पिछली कार्यकारिणी का चुनाव हुआ था. तब से दलित लेखन और उसके महत्व में काफी परिवर्तन आए हैं. एक ओर जहाँ नए-नए लेखक ताज़गीभरे नए लेखन के साथ दृश्यपटल पर उभर रहे थे तो दूसरी ओर हिंदी साहित्य में दलित लेखकों का महत्व बढ़ता जा रहा था. उन्हें मुख्यधारा के पत्र-पत्रिकाओं में आग्रहपूर्वक छापा जा रहा था. जिससे दलित लेखकों को नई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. नई परिस्थितियों, चुनौतियों और युवा लेखकों को प्रतिनिधित्व देने के लिए कार्यकारिणी के सदस्य निवर्तमान अध्यक्ष से अनुरोध करने लगे कि दलित लेखक संघ का तीसरा अधिवेशन बुलाया जाए और उसमें नए पदाधिकारियों और नई कार्यकारिणी का चुनाव किया जाए. दलित लेखक संघ के नियमानुसार हर दो वर्ष बाद अधिवेशन आयोजित किया जाना चाहिए. कार्यकारिणी के सदस्यों के अनुरोध की उपेक्षा करते हुए निवर्तमान अध्यक्ष तीसरे अधिवेशन के आयोजन और पदाधिकारियों और कार्यकारिणी के चुनाव को टालते रहे.

इसी पृष्ठभूमि में 6 सितंबर 2007 को दलित लेखक संघ की नई कार्यकारिणी का चुनाव किया गया. जिसमें अध्यक्ष के पद पर सर्वसम्मति से श्री कर्मशील भारती, उपाध्यक्ष के पद पर डॉ. कुसुम वियोगी और प्रो. शत्रुघ्‍न कुमार, महासचिव के पद पर श्रीमती अनिता भारती, सचिव के पद पर डॉ. अजय नावरिया, श्री कृष्ण लाल परख, डॉ. संतराम आर्य, श्रीमती पुष्पा विवेक, कोषाध्यक्ष के पद पर श्री शीलबोधि का चुनाव किया गया. इसके साथ ही कार्यकारिणी का भी गठन किया गया. जिसमें श्री मोहनदास नैमिशराय, डॉ. जय प्रकाश कर्दम, डॉ. तेज सिंह, सुश्री रजनी तिलक, श्री लक्ष्मी नारायण सुधाकर, डॉ.आर.एम.एस. विजयी, डॉ. श्योराज सिंह बैचेन, श्री शेखर पवार, श्री हीरालाल राजस्थानी, सुश्री कृपा गौतम, श्री महिपाल सिंह, श्री रघुवीर सिंह, श्री ईश कुमार गंगानिया, श्री एच.एल. दुसाध, श्री बृजपाल भारती, श्री जसवंत सिंह, श्री राज वाल्मिकी, डॉ. पूरन सिंह, श्री के. पी. मौर्य, श्री नेतराम ठगेला आदि को शामिल किया गया.

दिनांक 13 सितंबर 2007 को बयान पत्रिका के उप संपादक श्री रूपचंद गौतम की पत्रकारिता पर प्रकाशित पुस्तक ‘दलित रिपोर्टिंग’ पर चर्चा आयोजित की गई. श्री रूपचंद गौतम की पत्रकारिता पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इस पुस्तक चर्चा में प्रसिद्ध पत्रकार श्री अनिल चमड़िया, कालका मेल के संपादक श्री जनार्दन मिश्र, प्रो.बीएस निगम तथा सम्यक भारत के संपादक श्री के. पी. मौर्य ने भाग लिया. इस चर्चा में दलित पत्रकारिता और रिपोर्टिंग के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया. यह पुस्तक-चर्चा दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित की गई थी.

23 सितंबर 2007, पूना समझौते की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ की पूर्व संध्या पर यमुना पार के हर्ष विहार स्थित बौद्ध विहार में सार्वजनिक सभा आयोजित की गई जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. नन्दूराम और डा. भगवान दास व ईशकुमार गंगनिया मुख्य वक्ता थे. सभी वक्ताओं ने पूना समझौते के 75 वर्ष, भूमंडलीकरण और दलित समाज आदि विषयों पर अपने विचार रखे.

विख्यात अंबेडकरवादी साहित्यकार श्री आनंद स्वरूप का हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया. उन पर 28 अक्तूबर, 2007 को अंबेडकर भवन, रानी झांसी रोड, दिल्ली में शोक सभा रखी गई. शोक सभा में विभिन्न दलित – गैर-दलित लेखकों ने आनंद स्वरूप के जीवन और लेखन पर चर्चा की. उनके शोक में दो मिनट का मौन भी रखा गया.

24 दिसंबर, 2008 को साँय 5.30 बजे गाँधी शांति प्रतिष्ठान में डॉ. संतराम आर्य के कहानी संग्रह 'उधार की जिंदगी' पर चर्चा रखी गई जिसमें मुख्य वक्ता प्रसिद्ध कहानीकार महेश दर्पण, अजय नावरिया, मुकेश मानस, रजनी तिलक और प्रो. शत्रुघ्‍न कुमार ने भाग लिया।

12 जनवरी 2008 को विश्व शांति स्तूप, इंद्रप्रस्थ पार्क में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई. जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री एल एन सुधाकर की. काव्य गोष्ठी में राज वाल्मीकि, वेद प्रकाश, अजय नावरिया, के. पी. मौर्य, मंजुलता मौर्य, डॉ. संतराम आर्य, कर्मशील भारती, जसवंत सिंह जनमेजय, डॉ. आर.एम.एस विजयी, आर.आर. राजा, रूपचन्द गौतम, कृष्णा प्रिया, अनिता भारती और पी. के. शाही ने भाग लिया.

26 जनवरी 2008 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रात: 11 बजे मुनिरका में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसकी अध्यक्षता श्री तेजपाल सिंह तेज ने की. काव्य गोष्ठी में मुकेश मानस, ईशकुमार गंगनिया, डॉ. महेंद्र प्रताप राणा, एच. एल. दुसाध, डॉ.दिनेश राम, अजय नावरिया, देवी सिंह, शीलबोधि, कृष्ण पाल परख, प्रो.शत्रुघ‌न कुमार, आमिर, डॉ संतराम आर्य, डॉ चिरंजी लाल, डॉ सूरजमल सितम, जन कवि सूरजभान आजाद, सागर कवि सांग, अरुण कुमार गौतम, कर्मशील भारती और टेकचंद आदि कवियों ने अपनी कविताएँ सुनाईं.

10 फरवरी 2008 को दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक सम्मेलन में लघुकथा पाठ का आयोजन किया गया जिसमें रजत रानी मीनू (धोखा), कृष्ण पाल परख (जात, कूड़ा व काश मेरे पूँछ होती), डॉ पूरन सिंह (एक और जीत), श्योराज सिंह बेचैन (शीतल के सपने), अनिता भारती (जच्चा), पुष्पा विवेक (दलित हुँकार), शर्मिला सिन्हा (भगवान दास), रजनी तिलक (दलित लेखक), राज वाल्मीकि (दर्द न जाने कोई), वेद प्रकाश (विमोचन), शीलबोधि (फैमिनिज़्म) आदि ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया. इसके बाद कहानी कला पर चर्चा भी की गई.

24 मार्च 2008 को सुप्रसिद्ध युवा लेखक अजय नावरिया के प्रथम उपन्यास ‘उधर के लोग’ पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई जिसके मुख्य वक्ता राजेंद्र यादव (संपादक हंस), अभय कुमार दुबे, दलित चिंतक श्री कँवल भारती , विख्यात कवयित्री सुश्री अनामिका तथा श्री हीरालाल राजस्थानी थे. इनके अतिरिक्त सुश्री रजनी तिलक और श्री एच एल दुसाध ने भी अपने विचार रखे.

9 अप्रैल, 2008 को सायं 5.30 बजे मराठी दलित साहित्य के आधार स्तंभ श्री बाबू राव वागुल के परिनिर्वाण दिवस पर दिल्ली समाज कार्य विद्यालय में उनके लेखन-कर्म और सामाजिक जीवन के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया. उनकी स्मृति-सभा में उनकी चर्चित कहानी जब मैंने जात छुपाई का पाठ किया गया तथा उन पर बनाई गई फिल्म बाबूराव बागुल-एक साक्षात्कार- का प्रदर्शन किया गया. स्मृति-सभा में विशिष्ट अतिथि के रुप में माननीय लक्ष्मण गायकवाड ने अपना वक्तव्य रखा. सभा में डॉ.तेजसिंह, श्री ईशकुमार गंगानिया, सुश्री रजनी तिलक, श्री शीलबोधि, श्री टी. पी. सिंह, सुश्री अनिता भारती, डॉ कुसुम वियोगी ने भी बाबूराव बागुल पर अपने विचार रखे.

दलित लेखक संघ ने अपने पुनर्गठन के बाद सितम्बर 2007 से मार्च 2008 के बीच एक के बाद एक नौ कार्यक्रम करके साहित्य जगत में हलचल व सक्रियता बनाए रखी. इस बीच राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न लेखकों से संवाद बनाया गया और संघ के अखिल भारतीय स्वरूप पर विचार किया जाता रहा है. संघ आगामी दिनों में बहुलक्ष्यीय कार्यक्रम लेकर आएगा ताकि आंदोलन के लिए लिखने वाले लेखकों की सक्रियता को और बढ़ाया जा सके.